Monday 15 June 2020

युद्ध अभियान में द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के शूरवीर: मेघ. हेमाराम

शेरगढ़ तहसील के तेना गांव के कईं युवक सन 1942 में सेना में भर्ती हुए, जिन्हें इटली, इराक, फ्रांस और अफ्रीका आदि के युद्ध अभियानों में भारतीय सेना के डिवीजन के सैनिक के रूप में भेज दिया गया। जहां उन्होंने बहादुरी से जंग को लड़ा और नाजी जर्मनी की सेनाओं को परास्त किया। इसी दरम्यान भारत की बर्मा सीमा पर भी युद्ध छिड़ गया। उस हेतु नई भर्ती की गई। सन 1943 को शेरगढ़ में हुई सैनिक भर्ती में तेना के युवा मेघ. हेमाराम पुत्र श्री रामाराम मेघवाल भी भर्ती हो गए।
                 हेमाराम और उनके साथियों को आवश्यक प्रशिक्षण के बाद बर्मा अभियान में भेज दिया गया। जहां उन्होंने बहादुरी से दुश्मन को मात दी और भारत को विजय मिली। युद्ध समाप्ति के बाद हेमाराम और उनके साथियों को पदक व डेकोरेशन देकर सम्मानित किया गया।
                     देश आजाद होने से पहले विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। अतः हेमाराम व उनके कईं साथी सन 1947 मई में सेवानिवृत्त हो कर अपने गांव आ गए, लेकिन ज्यादा दिन घर नहीं रह सके। देश की आजादी के बाद कश्मीर युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध के समय में युवा सैनिक हेमाराम पुनः 1 सितंबर 1948 को (सेवा क्रमांक: 7991392, पायनियर कोर)
पायनियर कॉर्प्स में भर्ती हो गए और भारत-पाक के प्रथम युद्ध (1947-1948) में कश्मीर सीमा पर युद्ध रत रहे।
                      इसके बाद सन 1962 के भारत-चीन युद्ध में बहादुरी से युद्ध को जीतकर वे सेवानिवृत्त हो अपने गांव आ गए और सेवानिवृति का जीवन एक किसान के रूप में बिताया। आज वीर सैनिक हेमाराम हमारे बीच में नहीं है, परंतु उनकी बहादुरी और साहस के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध के शूरवीरों के साथ उनको भी कोटि कोटि नमन करते है।

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