Saturday 6 June 2020

द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के शूरवीर: मेघ. जवाराराम


                         जर्मनी के द्वारा यूरोप में शुरू किये आक्रमण अभियानों ने शीघ्र ही पूरे विश्व को युद्ध की विभीषिका में ला खड़ा कर दिया। पोलैंड पर कब्जा करने के बाद फ्रांस का भी पतन हो गया, ऐसे में ब्रिटेन ही मजबूत पक्ष था, जो धुरी राष्ट्रों के आक्रमणों का जबाब दे सकता था। इसका एक कारण तो यह था कि 60 से अधिक देश ब्रिटेन के उपनिवेश थे और वहां ब्रिटेन का सीधा शासन था। भारत जैसे कुछ अन्य देश भी थे, जो ब्रिटेन के अधीन थे। वे भी इस युद्ध में कूद पड़े। भारत की सेना ब्रिटेन के अधीन थी और वह अपने युद्ध -कौशल व बहादुरी के लिए ख्यातनाम थी। ब्रिटेन ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय सेना को कईं अभियानों में अलग अलग टुकड़ियों में भेजा।
                      जब यूरोप में युद्ध ने भयानक रूप धारण किया तो ब्रिटेन ने व्यापक स्तर पर सेना में युवकों को भर्ती करना शुरू किया। युद्ध की इसी अवधि के दरम्यान 8 जून 1942 को युवक जवाराराम का भी सेना में नामांकन हुआ। इनके पिताजी का नाम मोडाराम जी मेघवाल था। उस समय भारतीय सेना को यूरोप भेजा जा रहा था। इंडियन इन्फेंट्री ब्रिगेड के कई डिवीज़न वहां तैनात किए गए थे। युवा सैनिक जवाराराम को भी अन्य सैनिक साथियों के साथ ब्रिटेन की भारतीय सेना में भूमध्यसागरीय इलाके में भेज दिया गया। 
                 युवा सैनिक जवाराराम और उनके साथी सैनिक 29 नवम्बर 1942 को युद्ध भूमि में पहुंचे और नाजी सेनाओं से लोहा लेने शुरू किया। ये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उत्तरी अफ्रीका में चल रहे युद्ध अभियान में 12 मई 1943 तक युद्धरत रहे। इस दरम्यान अन्य छोटे बड़े युद्ध अभियानों में भी भाग लिया। उन्होंने इतालवी युद्ध अभियान, जो सिसली, इटली में 11 जून 1943 से 8 मई 1945 की अवधि के दौरान  हुआ, उस में सिसिली/इटली में युद्ध में भाग लिया था। जवाराराम और उनके साथी ब्रिटेन की कॉमनवेल्थ सेना में दिनांक 29. 11. 1942 से 05. 08. 1945 तक अफ्रीका, इटली और सेंट्रल मेडिटेरेनियन क्षेत्र के विभिन्न युद्ध अभियानों में निरंतर युद्ध भूमि पर डटे रहे। ऐसे बहादुर सैनिकों के युद्ध कौशल से ही मित्र राष्ट्रों को जीत मिली। 
                   अफ्रीका और इटली के युद्ध अभियानों में वीरता और शौर्य के लिए उन्हें अफ्रीका स्टार मैडल और इटली स्टार मैडल देकर सम्मानित किया गया। उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध 1939-1942 के वॉर मैडल देकर सम्मानित किया गया।
                    द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने के बाद उनकी टुकड़ी भारत वापस आ गई। इधर देश की स्वतंत्रता का आंदोलन तीव्रता से चल रहा था। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और जवाराराम जी भारतीय सेना के सिपाही के रूप में सेवा में बने रहे। आज़ादी के समय ये भारतीय सेना के सिपाही रहे, इसलिए उन्हें 'स्वतंत्रता पदक/इंडिपेंडेंस मैडल' देकर सम्मानित किया गया।
                  देश की आजादी के बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो गया। इनकी टुकड़ी को 01 दिसम्बर 1949 से 11 जनवरी 1960 तक कश्मीर के तनावग्रस्त क्षेत्र में ही तैनात रखा गया। युवा सैनिक जवाराराम जम्मू-कश्मीर मैडल व रक्षा मैडल देकर सम्मानित किया गया। 13 नवम्बर 1960 को गौरवपूर्ण सैन्य सेवा पूरी कर अपने गांव नाथडाउ आ गए और पुश्तैनी खेती के कार्य को करने लगे।
                  द्वितीय विश्वयुद्ध के जांबाज सैनिकों के स्मरण के साथ जवाराराम जी को भी कोटि-कोटि नमन, जिन्होंने अपने साहस, बल, बहादुरी और शौर्य से देश और जाति का नाम ऊंचा उठाया।

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