Friday 5 June 2020

द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के शूरवीर: कैप्टन मेघ बेलीराम जी


द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मेघ बेलीराम ग्राम रियासी में प्रारंभिक शिक्षा के बाद अपने पिता दूलोराम के साथ खेती-बाड़ी के कार्य में लगे हुए थे। जब सेना में भर्ती की जाने लगी तो युवा बेलीराम 25 अप्रैल 1942 में सेना में नामांकित हो गए। उस समय भारत-बर्मा-चीन सीमा पर जापान आगे बढ़ रहा था और जर्मनी की सेना उनके साथ थी। धुरी राष्ट्रों की सेनाओं का मुकाबला करने के लिए अमेरिका की सेना हिन्द-महासागर होते हुए कलकत्ता पहुंच चुकी थी और उसकी तैनाती बर्मा बॉर्डर पर की जा चुकी थी। जहां सेना 'लेडो से रंगून' तक वैकल्पिक सड़क निर्माण के साथ युद्धरत भी थी।
                    धुरी राष्ट्रों की सेनाओं ने चीन की सेना को खदेड़ते हुए चीन औऱ बर्मा के राजमार्ग को अपने कब्जे में ले लिया था। नैनीताल के पास रामपुर में चीनी सैनिकों को प्रशिक्षित किया गया और उन्हें धुरी राष्ट्रों की सेनाओं को रोकने के लिए और बर्मा को पुनः जीतने के लिए ब्रिटिश भारतीय सेना के कई डिविजन्स के साथ वहां तैनात किया गया। युवा सैनिक बेलीराम की तैनाती भी उसी इंडियन इन्फेंट्री ब्रिगेड में थी, जो बर्मा की सीमा पर युद्धरत थी।
                    युद्ध के दौरान युवा बेलीराम ने साहस एवं शौर्य के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया। एक तरह से यह गुरिल्ला वॉर से कम नहीं था। कभी युद्ध रुकता, कभी अचानक किसी भी हिस्से पर आक्रमण हो जाता। युवा सैनिक बेलीराम और अन्य साथियों ने सदैव सजगता एवं शौर्य से युद्ध-मैदान में अपनी बहादुरी दिखाई। सन 1945 में जापानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया व मित्र राष्ट्रों की जीत हुई। इस युद्ध अभियान में उत्कृष्ट बहादुरी और वीरता के लिए बेलीराम को वॉर मैडल/विक्ट्री मैडल 1939-1945, वॉर स्टार मैडल 1939-1945, बर्मा स्टार मैडल व अन्य डेकोरेशन आदि प्रदान कर सम्मानित किया गया। उनका नाम विशेष उल्लेख के साथ डिस्पैच में उल्लेखित किया गया। 
                      बहादुर मेघ बेलीराम ने सदैव बहादुरी और निष्ठा से सैनिक कर्तव्य का पालन किया। उन्हें प्रोन्नत कर अधिकारी बना दिया गया। देश आजाद होने पर वे स्वतंत्र भारतीय सेना के सिपाही हो गए। उन्हें इस अवसर पर स्वतंत्रता मैडल देकर उनकी सैन्य-सेवा का सम्मान किया गया। सन 1947 में ही जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर लिया तो बेलीराम की तैनाती कश्मीर की युद्ध भूमि पर हो गयी। उस युद्ध में भी अदम्य साहस औऱ बहादुरी के लिए उन्हें जम्मू-कश्मीर मैडल 1947-48 देकर सम्मान किया गया। उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें सैन्य सेवा अवार्ड और डिफेंस मैडल देकर उनकी सैन्य सेवा का सम्मान किया गया। उन्होंने नेफा क्षेत्र में भी भाग लेकर शांति को बहाल कराया। इस हेतु भी उन्हें नेफा डेकोरेशन व पुरस्कार प्रदान किया हमय।
                    उनकी सेवा अवधि में ही 1962 व 1965 में चीन व पाकिस्तान द्वारा किये गए आक्रमणों में बहादुरी से जंग लड़ा और इन दोनों ही युद्धों में भारत की विजय दिलाने में सैनिक-कर्तव्य का निर्वहन किया। बेलीराम एक सैनिक से कैप्टेन के पद तक अपने कौशल व बहादुरी के बल पर पहुंच सके। इन युद्धों में बहादुरी से भाग लेकर वे 16 जनवरी 1969 को सेवा निवृत्त हो गए। उनकी उत्कृष्ट सैन्य-सेवा के लिए 26 जनवरी 1969 को राष्ट्रपति वी वी गिरी ने दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया।
                     सेवानिवृति के बाद कैप्टन बेलीराम चंडीगढ़ में स्थायी रूप से बस गए और वहां सामाजिक कार्यों में लोगों को मार्गदर्शन प्रदान करते रहे। कैप्टन बेलीराम का 88 वर्ष की उम्र में चंडीगढ़ में दिनांक 3 जून 2006 को देहावसान हो गया। बहादुर, नेक दिल, अनुशासन प्रिय कैप्टन बेलीराम आज हमारे बीच में नहीं है, परंतु उनकी बहादुरी, अनुशासनप्रियता और युद्ध कौशल के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के सभी सैनिकों के साथ उनको भी कोटि-कोटि नमन, जिन्होंने सदैव देश और जाति का नाम ऊंचा उठाया!

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