Thursday 4 June 2020

द्वितीय विश्व युद्ध के शूरवीर: मेघ. ओमप्रकाश सिंह

 विश्व में सबसे लंबी अवधि तक चलने वाले विश्वयुद्धों में से दूसरा विश्वयुद्ध 1939 से लेकर 1945 के बीच लड़ा गया। इस युद्ध की शुरुआत जर्मनी के एडोल्फ हिटलर ने की थी। इसके प्रतिफल विश्व दो भागों में बंट गया था। जर्मनी आदि धुरी राष्ट्र थे तो इंग्लैंड आदि मित्र राष्ट्र थे। उस समय ब्रिटिश एम्पायर के अधीन 60 से अधिक राष्ट्र थे। इसके अलावा इंडिया एम्पायर भी ब्रिटेन के अधीन था और भारत के 500 से अधिक देशी रियासते भी ब्रिटेन के अधीन थी। जब ब्रिटेन विश्व युद्ध में कूद पड़ा तो भारत एम्पायर को भी युद्ध में सरीक होना ही था। 
           सन 1940-1941 को जापान ने बर्मा को अपने अधीन कर लिया जो ब्रिटिश के अधीन इंडिया एम्पायर का हिस्सा था। ब्रिटिश सेना जापान को खदेड़ नहीं सकी। जापान ने चीन के हिस्से को भी अपने कब्जे में ले लिया था। चीन मित्र राष्ट्रों यानी इंग्लैंड के साथ था और जापान धुरी राष्ट्र यानी जर्मनी के साथ। इंडियन एम्पायर को बचाने के लिए ब्रिटेन की मदद हेतु अमेरिका की सेना भी बर्मा फ्रंट पर आ खड़ी हुई और भयंकर युद्ध जारी रहा। यह 1945 तक चलता रहा।
           ब्रिटेन ने युद्ध को जीतने के लिए भारत के बहादुर सैनिकों को भर्ती करना शुरू किया। उस समय शेरगढ़ तहसील के सैकड़ों लोग सेना में भर्ती हुए। जिनमें राजपूत और मेघवाल सबसे अधिक थे। इंग्लैंड ने हारी हुई बाजी को जीतने के लिए जब भर्ती शुरू की तो सैकड़ों मेघवालों में से ओमप्रकाश सिंह भी एक थे, जो इस युद्ध को जीतने के लिए युद्ध भूमि में जाना चाहते थे। ये शेरगढ़ तहसील के तेना गांव के रहने वाले थे। इनके पिताजी का नाम धन्नाराम था। ये पंवार खांप के थे। 
        12 नवम्बर 1942 को आप ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हुए। इनके साथ ही तेना गांव के 8-10 मेघवाल युवक और भर्ती हुए। सभी लोग इंडिया-बर्मा-चाइना फ्रंट पर जा डटे। बड़ी विपन्न परिस्थितियों में यह युद्ध लड़ा गया और भारतीय सैनिकों के वहाँ जाने और बहादुरी से लड़ने के कारण ही ब्रिटेन जापान को वापस खदेड़ने में कामयाब हुआ। जिसकी भूरी भूरी प्रशंसा उस समय के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल महोदय ने की।
         इस युद्ध में ओमप्रकाश सिंह को वीरता पुरस्कार मिला और उनका नाम डिस्पैच में दर्ज हुआ। उन्हें वार मेडल 1939-1945, वार स्टार 1939-1945 आदि से नवाजा गया। ओमप्रकाश सिंह और उनके साथी कॉमनवेल्थ सेना में अफ्रीका, इटली और पेसिफिक में भी युद्ध रत रहे और अपनी शूरवीरता का परिचय दिया। इस हेतु भी उन्हें पुरस्कृत किया गया। 
          भारत के आजाद होने पर इंडियन इन्फेंट्री को आजाद भारत को ट्रांसफर कर दिया गया। उस समय आप की सेवा भी भारत सरकार को ट्रांसफर कर दी गई। इन हेतु उन्हें डिफेंस सर्विस 1939-1945 का मेडल दिया गया और इंडिपेंडेंस मेडल भी।
            भारत और पाकिस्तान के प्रथम युद्ध 1947-1948 में आप कश्मीर के क्षेत्र में युद्धरत रहे और कश्मीर को आजाद कराने में शूरवीरता दिखाई। भारत सरकार ने उन्हें इंडिपेंडेंस मेडल और जम्मू कश्मीर मेडल देकर मान बढ़ाया। बाद में भी नेफा आदि की लड़ाई में भी बहादुरी हेतु विभिन्न मेडल मिले। ओमप्रकाश सिंह जी 26 जून 1961 को सेवानिवृत होकर आए और अपने पुश्तैनी गांव तेना में बस गए।  27 जनवरी 2007 को आपका तेना गांव में देहावसान हुआ।
         ऐसे शूरवीर को कोटि कोटि नमन।

     कुछ मेडल्स यहां दर्शाए गए है।

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