Thursday 4 June 2020

प्रथम विश्वयुद्ध और नृसिंह जी वल्द वना जी मेघवाल

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               सन 1914-1919 के बीच लड़े गए प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजो की ओर से जोधपुर रियासत की सेना ने भी हिस्सा लिया था। दुनिया मे लम्बी अवधि तक चलने वाला यह यह प्रथम विश्वयुद्ध था। जोधपुर की सेना हाइफा के किले को फतह करने में कामयाब हुई और ब्रिटेन को विजय श्री मिली। इसका पूरा-पूरा श्रेय जोधपुर की सेना को दिया जाता है। जोधपुर रिसाला की इस सेना में राजपूत सैनिकों के साथ-साथ कुछ मेघवाल सैनिक भी थे। जिन में उस समय जोधपुर में निवास करने वाले बाली (पाली) के नृसिंह जी मेघवाल भी एक प्रमुख सैनिक थे। जिन्होंने इस विश्वयुद्ध में बतौर सैनिक अपनी बहादुरी का परिचय दिया और मेघों का नाम रोशन किया। यह जानकारी उनके परिवार-जनों ने उपलब्ध करवाई है।(उनकी जीवनी पर अन्यत्र लिखा गया है)।

                  विश्व-इतिहास की इस लड़ाई को हाइफा की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है। हाइफा की लड़ाई 23 सितंबर 1918 को लड़ी गयी। इस लड़ाई में राजपूताने की सेना का नेतृत्व जोधपुर रियासत के सेनापति मेजर दलपत सिंह ने किया, उनका जन्म वर्तमान पाली जिले के देवली गाँव मे रावणा राजपूत परिवार में हुआ था। इस युद्ध में जोधपुर सेना के लगभग 900 सैनिक शहीद हुए, जिसमें 79 सैनिक शेरगढ़ तहसील के थे। जिनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए शेरगढ़ तहसील के प्रांगण में शिलालेख लगाया हुआ है।
               इस लड़ाई के शूरवीरों का रिकॉर्ड दर्ज नहीं किया गया, यह बहुत ही दुःखद बात है। यह इतिहास में दर्ज है कि अंग्रेजो ने जोधपुर रियासत की सेना को हाइफा पर कब्जा करने के आदेश दिए थे। आदेश मिलते ही जोधपुर रियासत के महाराजा की अनुपस्थिति में मेजर दलपत सिंह ने जोधपुर की सेना का नेतृत्व किया। जोधपुर सेना, जो कि ब्रिटेन की ओर से लड़ रही थी, उसके सेनापति दलपत सिंह ने अपनी सेना को दुश्मन पर टूट पड़ने के लिए निर्देश दिया। इस युद्ध में दलपतसिंह युद्ध करते हुए अपने घोड़े से गिर गए और बुरी तरह घायल हो गए। फिर भी वे सेना को निर्देश देते रहे कि उन्हें सिर्फ और सिर्फ जीत चाहिए। जोधपुर की सेना डटी रही और अंततः उनको विजयश्री मिली। विजय मिलने के बाद मेजर दलपत सिंह के प्राण-पंखेरू उड़ गए। वे वीरगति को प्राप्त हुए। संभवतः देश के बाहर राजस्थान के सैनिकों द्वारा लड़ा जाने वाला यह प्रथम युद्ध था। इस युद्ध में राजस्थान के रणबांकुरो की सेना दुश्मन को खत्म करने और हाइफा पर कब्जा करने के लिए अंतिम दम तक लड़ती रही। जिसकी कीर्ति-पताका चहुं ओर फैली और जोधपुर के शूरवीरों का दुनियां में नाम रोशन हुआ। 
                युद्ध के परिणाम ने एक अमर इतिहास लिख डाला। आज मेजर दलपतसिंह को उनकी वीरता और कुशल नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। यह युद्ध दुनिया के मात्र ऐसा युद्ध था जो की तलवारो और बंदूकों के बीच हुआ। इस युद्ध के सभी शूरवीरों को नमन करते हुए इस युद्ध में वीर-सिपाही रहे मेघ. नृसिंह जी वल्द वनाजी निवासी बाली, जिला पाली को भी श्रद्धा सुमन अर्पित करते है।

*उनके जीवन के बारे में अन्य पोस्ट देखें
# यह फ़ोटो मेघवाल नृसिंह जी डांगी के पोते श्री नवीन जी डांगी द्वारा उपलब्ध करवाया गया है।

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